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'गुमनाम' कलम से ... (2).png

"भ्रूण हत्या" 

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बतने मादर में मुसीबत घेर लेती है जिन्हें ।

जन्म लेने से कबल ही, मौत मिलती है जिन्हें।

नेको बद काम करते दुनिया में सब आने के बाद । कब्ले पैदायश है सज़ा किस जुर्म की मिलती इन्हें।

कौन सा यह जुर्म है, हैं अगर ये लड़कियां।

इन्सानियत का खून है, ये भोली भाली बच्चियां ।

जब बियावां कर रहा है पूरे जहां के आदमी तब बसाईं औरतों ने दुनिया भर की बस्तियां।

 

बन गया हर आदमी शैतान क्यों कर आज कल

हैवानियत से भर गया इनसान क्यों है आज कल।

क्यों नहीं मिलती इसे, जुल्मों तश्शदद की सजा।

देखता चुपचाप है भगवान् क्यों कर आज कल। 


हैं वालदैन की रहती सदा गम खार लड़कियां। 
ग़ुरबत में राहत बख्शती हैं होनहार लड़कियां। 
घर घर में इन के सर पर, आराम हो रहा है,
हैं पालती संभालती परिवार लड़किया। 

 

 

बेकसूर , बेवजह, खाती हैं मार लड़कियां ।

बांटती हैं जिसके एवज़, सब को प्यार लड़कियां।

इस से बढ़ कर जुल्म और हो सकता है क्या,

हैं सरे आम बिक रही बाज़ार लड़कियां ।

 

कहर को देती चिनौती, ललकार बनकर लड़कियां ।

सागरों कोचीर दें, पतवार बन कर लड़कियां।

हर तरह के जुल्म का तब खात्मा हो जाये गा,

तन कर खड़ी हो जायें गर दीवार बन कर लड़कियां।

 

दमी की जात को औरत बचाती ही रही।

बांट कर सब को खुशी, गम उठाती ही रही।

उस की हस्ती को मिटाना है बहुत भारी गुनाह,

जिसकी बदौलत एहले जमी है लहलहाती ही रही।

जब ना रहेंगी औरतें, इन्सानियत मर जायेगी।

बोल बाला सित्म का, शैतानियत उभरायेगी।

आदमी के हाथ ही, मर मिटे आदम-वजूद,

खुश बाश सी जब ना रहेंगी, कुल जहां में लड़कियां।

 

बहुत जल्दी सम्भल जाओ, ऐसी शिद्दत आयेगी।

मर्द होंगे बेशुमार, औरत की किल्लत आयेगी।

ढूँढते रह जाओगे जा-ब-जा तुम लड़कियां ।

आलातरी शोहर को भी ना जब मिलें गी बीवियां।

कुछ भी करने से कबल गुमनाम सोचा तो करो।

जिस जगह भी हो रहा हो जुल्म रोका तो करो।

लड़के लड़की में फरक जब नहीं रह जायेगा। ।

अहले जन्नत से हुसी यह देश तब कहलायेगा।

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