
"खून दान"

खूने जिसम की बून्द बून्द से सिंच कर ।
गुलशन का हर कांटा भी फूल बन जाये।
जो बांट लेंगे हम एक दूसरे का दर्द ।
तब यह सोच बे हद ही माकूल हो जाये।
जब आदमी के काम आये गा हर बशर
तो परचमे मुहब्बत हर जगह लहरायेगा
बेबस जरूरत मन्द के काम आये हमारा खून
कितना उमदा तब यह असूले हयात हो जायेगा।
भरम है अहले हिन्द! इसे दिल से मिटा देना।
कि हम कमज़ोर होते हैं, किसी को खून देने से ।
यह कुदरत का करिश्मा है इसे इन्सान क्या समझे,
जिसम में खू नहीं घटता किसी को खून देने से।
फरक कुछ भी नहीं पड़ता जरा सा खून जाने पर।
खुदा के नेक बन्दों में, फरिशतों में गिना जाता,
शबर इन्सान कहलाता, किसी को खून देन पर।
दुखी, महरूम, मुफ़लिस को दोबारा जिन्दगी मिलती, किसी का कुछ नहीं घटता किसी को खून देने से।
(iii) नहीं बढ़ कर अबादत है, नहीं इससे बडा मजहब, खुशी बढ़ती है दुनिया में किसी के काम आने में
जीते जी, मर कर भी जो काम औरों के आ जायें। बहुत कम लोग ऐसे हैं मेरे हमदम! जमाने में। हमारा खून काम आये अपने को बेगाने को लहू के चन्द कतरों से किसी की जान बच जाये तमन्ना है मेर खू की खुदारा ऐसी ख़सलत हो रगों में यह रहे बहता किसी के काम आने में। बहुत है नेक खवाहिश, दान करना खून औरों को हमेकुछ डालना वाजिब है कुदरत के खजाने में।
(iv) कतल होता है आदम का है बहता खून सड़कों पर। जवां और खूबसूरत ज़िन्दगी क्यों बरबाद हो जाये। यं ही बहने से बहतर खं वतन के काम आ जाये जिसम में खून काफ़ी है, रहे काम आता औरों के पवित्र, पुन्थ, कोई इस से बड़ा विश्वास क्या होगा ज़रूरत है समझने की, सम्भलने सोचने की भी, अमानत है वतन की खू, ना बहने देना सड़कों पर खूने इन्सां बचाने का हमें अहसास क्या होगा जो गुमनाम कहता है कभी न भूलना इस को बतन जब खून मांगेगा हमारे पास क्या होगा।