
"शराब"

अच्छी नहीं है दोस्तो! आदत शराब की। जड़ से उखाड़ फेंको यह लाअनत शराब की।
शराब पीकर आदमी, हैवान बन गया। हैवान से भी बदतर, शैतान बन गया। जीने का कुछ सलीका, ना काम से गरज शराब पीना जिस का इमान बन गया। रफता रफता जिन्दगी बे मौत मर गई दो दिन का इस जहां में, महमान बन गया। बीमारीयां चिपक गईं खफाश की तरह महसू र मौत से बे जान बन गया। सेहत ने ज़िन्दगी ने इसे अलविदा कहा मोहलक बीमारियों का मेज़बान बन गया। ना सोच, ना समझ, ना प्यार की तलब यह खूबसूरत ज़िन्दगी, यूं ही ख़राब की।
अच्छी बहीं है दोस्तो आदत शराब की जड़ से उखाड़ फेंको, यह लाअनत शराब की।
अच्छी भली सेहत को बिगाड़ते हैं लोग। दौलत को दोनों हाथों उजाड़ते हैं लोग। बुजदिल शिगाल जैसे मगर शेर की तरह
पीकर शराब सब को दहाड़ते हैं लोग। गिरती है इनकी बिजली, बीबी पे बच्चियों पे पाओं तले उन्हें लताड़ते हैं लोग रख्खा ना एक पल भी सजा कर संवार कर क्यों हस्ति-ए-चमन को उजाड़ते हैं लोग। हालत ना पूछिये उस दिल की दिमाग की। पीने के बाद इज्तराब झेलते हैं लोग। देखे पड़े हैं गन्दगी में लेटे लिपटते, लिपटे रहते धूल में पी कर शराब लोग। होशो हवास उड़ाने में कौन सा मज़ा है लुट लुट के अकसर सहते रहते अजाब लोग। जब जानते हैं जहर के बारबर शराब है पी रहे हैं फिर भी क्यों बेहसाब लोग देखी है आईना में पी कर कभी शकल, क्या बन गई शराब से सूरत जनाब की।
अच्छी नहीं है दोस्तो, आदत शराब की जड़ से उखाडफेंको यह लाअनत शराब की।
(iii) क्या कह रहे शराब का हो लूटते मज़ा। इससे बढ़ कर और क्या होगी अरे कज़ा। मौत को ही जिन्दगी जो समझते जनाब, खुद आप को ही दे रहे कितनी बड़ी सज़ा। पीते शराब बैठ कर जिन के बीच हैं घटिया, निकम्मे, जाहिल अजहद वो नीच हैं। करते सरूर में हैं बातें अजीब सी। तब छलकती है किस्मत बिगड़े नसीब की। देखने में लगता महज हैं जिस्मे आदमी
शकले दिमाग लेकिन अजीबो गरीब सी। तहस नहस कर दिया घर घाट का वजूद फूलों से लहलहाता गुलशन उजाड़ कर दर दर की भीखी मांगते जब कुछ नहीं बचा। रख दिया शराब ने सब कुछ बिगाड़ कर । कुछ समझ हो तो समझें बातें मुफ़ाद की छोटों बड़ों की ख़िदमत, ना परवाह औलाद की क्यों छोड़ने का नाम लेते नहीं उसे जिसने है शानो इज्जत जम कर खराब की
अच्छी नहीं है दोस्तो आदत शराब की जड़ से उखाड़ फेंको ये लाअनत शराब की।
(iv) खस्ता हाल कुनबा, बदहाल जी रहा है। जिस घर का कर्ता धरता शराब पी रहा है। भूखा प्यासा जिन्दगी है रहता घसीटता, कुछ खाये पिये बगैर कैसे वोह जी रहा है। ना खाने को भयस्सर खौराके जिस्म इन्हें दूध घी मख्खन ना हासिल हैं रोटियां, फाका कुशी ने इन की बरबाद की है सेहत तन बदन है दुबला, दो मुश्त हड्डियां । कमसिनों के चेहरों पे रौनक है ना खुशी कहने को खिल रही है फूली वगीचियां । जिन्हे नहीं मयस्सर दो वक्त का भी खाना रो रो के भूखी रात को सोती हैं बच्चियां । घर में कुछ नहीं गर इल्ज़ाम औरतों पर पिटती हैं इन के हाथें निर्दोष बीविया बच्चे स्कूल जायें तो जायें किस तरह,
बैग, वर्दी जूते, किताबें ना कापियों। तबाह हये घराने बरबाद खानदान उजाडी हैं इस शराब ने आबाद बस्तियां। आबरू ओ दौलत कुछ भी नहीं बचा सब कुछ उजाड़ बैठी हैं इन की गल्तियां। मन्दिरों में ईश के सम्मुख सर झुका कर कोसती हैं अपनी किस्मत को बच्चियां इस से और बदतर क्या असरे शराब होगा जो मिट रही है जिन्दगी जलालो शबाब सी
अच्छी नहीं है दोस्तो, आदत शराब की जड़ से उखाड़ फेंको ये लाअनत शराब की।
खुद हयाते दुशमन बनते हैं आप क्यों। नेकी की राह छोड़ कर करते हैं पाप क्यों। चाहत है गर खुशी की छोडो शराब को जमाना बदल चला है तुम भी बदल चलो। मामूली सी बात है ये समझे ना उम्र भर। गरिफ़ते शराब से बस बच कर निकल चलो। बन जाये खूब सूरत गुमनाम ज़िन्दगी फिर जरूरत है फक्त सोच में इन्कलाब की
अच्छी नहीं है दोस्तो आदत शराब की जड़ से उखाड़ फेंको यह लाअनत शराब की।
बैग, वर्दी जूते, किताबें ना कापियों। तबाह हये घराने बरबाद खानदान उजाडी हैं इस शराब ने आबाद बस्तियां। आबरू ओ दौलत कुछ भी नहीं बचा सब कुछ उजाड़ बैठी हैं इन की गल्तियां। मन्दिरों में ईश के सम्मुख सर झुका कर कोसती हैं अपनी किस्मत को बच्चियां इस से और बदतर क्या असरे शराब होगा जो मिट रही है जिन्दगी जलालो शबाब सी
अच्छी नहीं है दोस्तो, आदत शराब की जड़ से उखाड़ फेंको ये लाअनत शराब की।
खुद हयाते दुशमन बनते हैं आप क्यों। नेकी की राह छोड़ कर करते हैं पाप क्यों। चाहत है गर खुशी की छोडो शराब को जमाना बदल चला है तुम भी बदल चलो। मामूली सी बात है ये समझे ना उम्र भर। गरिफ़ते शराब से बस बच कर निकल चलो। बन जाये खूब सूरत गुमनाम ज़िन्दगी फिर जरूरत है फक्त सोच में इन्कलाब की
अच्छी नहीं है दोस्तो आदत शराब की जड़ से उखाड़ फेंको यह लाअनत शराब की।