
हमारे नानाजी, आदरणीय श्री नरेश चन्द शर्मा जी के गुमनाम लेखन को जगत के समक्ष प्रस्तुत करने का एक छोटा सा प्रयास

श्री नरेश शर्मा जी का जन्म 24 दिसम्बर 1932 में पंजाब के हरगोविन्दपुर जिला के गुरदासपुर में हुआ था। इनके पिता जी का नाम श्री मेहर चंद था, जो अपने समय के एक विख्यात वैद्य थे।
इन्होंने बी.ए. तथा हिंदी में प्रभाकर, व् इंग्लिश ट्रेनिंग के पश्चात्, एक टीचर के रूप में काम किया और 1990 में प्रिंसिपल के पद से सेवा निवृत्त हुए। इनका परिवार आर्य समाजी था और ये स्वयं भी वैदिक धर्म का अनुसरण करते थे। इनका जीवन बहुत ही साधारण व् विचार अति उच्च थे। नरेश जी गरीबों व् दुखियों की सहायता करने में सदा तत्पर रहे जब वे एक टीचर के रूप में काम कर रहे थे तब 3-4 बच्चों का भार हर साल अपने ऊपर लेते थे।
नरेश जी को शुरू से ही शायरी, ग़ज़लें व् कविताएँ लिखने का शौक था और उनका ये शौक ताउम्र बरक़रार रहा और उन्होंने बहुत सी शायरी, ग़ज़लें व् कविताएँ लिखीं। उनमे से कुछ हम यहाँ लाने का प्रयास कर रहे हैं। नरेश जी ने समाज की रूढ़िवादी नीतियों और प्रथाओं जैसे संवेदनशील विषयो पर भी बहुत कुछ लिखा है।
इनका विवाह एक अध्यापिका के साथ हुआ, जिन्होंने जीवन के हर मोड़ पर इनका सदैव साथ दिया। नरेश जी को लिखने के अलावा बागबानी का भी शौक रहा है। उन्होंने अपने घर के पास बहुत बड़ा बाग बनाया जहाँ आम, अमरूद, संतरे, अनार व् लीची आदि जैसे कई फलों के पेड़ लगाए और उनकी देखभाल भी वे स्वयं ही करते है। आजकल अस्वस्थ्य रहने के कारण अब ये सब करने मैं असमर्थ हैं। परन्तु, आज भी उनसे बात करके एक अद्भुत जोश और उत्साह की अनुभूति निश्चित है।